kavita- मोही मन
मोही मन
बार बार प्रयास करता हूं
गिरता हूं संभालता हूं
लेकिन हाय ये मन मोही
की में कुछ छोड़ ही नहीं पा रहा
जो भार मेरा शत्रु है
उसे भी कर्तव्य जान निभा रहा
लेकिन हाय ये मन मोही
की में कुछ छोड़ ही नहीं पा रहा
जिम्मेदारियां मैने ली मेरे सर पर
और उन्हें पूरी करने में अपना सर खपा रहा
लेकिन हाय ये मन मोही
की में कुछ छोड़ ही नहीं पा रहा
,.........✍ sanyam jain "Taran"
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